हिमाचल प्रदेश की कब्जाई गई वन भूमि पर लगे सेब के पेड़ों को काटने के हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। यह फैसला शिमला नगर निगम के पूर्व उपमहापौर टिकेन्द्र सिंह पंवार की याचिका पर सुनवाई के बाद आया है। इस मामले में पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वकील सुभाष चंद्रन ने की, जबकि इसकी जानकारी पूर्व महापौर संजय चौहान ने साझा की।
सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा है कि राज्य सरकार इन अवैध कब्जे वाली भूमि पर लगे सेब के पेड़ों का अधिग्रहण करे और फलों को अपने नियंत्रण में ले।
गौरतलब है कि पूर्व उपमहापौर टिकेन्द्र सिंह पंवार ने हाईकोर्ट के 2 जुलाई को जारी उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वन विभाग को निर्देश दिए गए थे कि कब्जाई गई वन भूमि से सेब के पेड़ों को हटाया जाए और उनकी जगह वन प्रजातियों का रोपण किया जाए। साथ ही अतिक्रमणकारियों से इस कार्य की लागत वसूली जाए।
याचिका में तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट का यह आदेश मनमाना, असंगत और संवैधानिक व पर्यावरणीय सिद्धांतों के विरुद्ध है। याचिकाकर्ता ने कहा कि हिमाचल प्रदेश एक भूकंप संभावित और पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य है। मानसून के दौरान इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का खतरा कई गुना बढ़ सकता है, जिससे न केवल राज्य की पारिस्थितिकी, बल्कि हजारों किसानों की आजीविका भी खतरे में पड़ सकती है।
याचिका में यह भी कहा गया कि सेब के बाग केवल अतिक्रमण का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये मृदा को स्थिर रखने, स्थानीय वन्य जीवों को आश्रय देने और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
याचिका के अनुसार 18 जुलाई तक प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर, चैथला, कोटगढ़ और रोहड़ू क्षेत्रों में अब तक 3,800 से अधिक सेब के पेड़ काटे जा चुके हैं, जबकि पूरे प्रदेश में लगभग 50,000 पेड़ों की कटाई की योजना बनाई गई है।